Lectionary Calendar
Friday, May 2nd, 2025
the Second Week after Easter
Attention!
Take your personal ministry to the Next Level by helping StudyLight build churches and supporting pastors in Uganda.
Click here to join the effort!

Read the Bible

पवित्र बाइबिल

अय्यूब 39

1 क्या तू जानता है कि पहाड़ पर की जंगली बकरियां कब बच्चे देती हैं? वा जब हरिणियां बियाती हैं, तब क्या तू देखता रहता है?2 क्या तू उनके महीने गिन सकता है, क्या तू उनके बियाने का समय जानता है?3 जब वे बैठ कर अपने बच्चों को जनतीं, वे अपनी पीड़ों से छूट जाती हैं?4 उनके बच्चे हृष्टपुष्ट हो कर मैदान में बढ़ जाते हैं; वे निकल जाते और फिर नहीं लौटते।5 किस ने बनैले गदहे को स्वाधीन कर के छोड़ दिया है? किस ने उसके बन्धन खोले हैं?6 उसका घर मैं ने निर्जल देश को, और उसका निवास लोनिया भूमि को ठहराया है।7 वह नगर के कोलाहल पर हंसता, और हांकने वाले की हांक सुनता भी नहीं।8 पहाड़ों पर जो कुछ मिलता है उसे वह चरता वह सब भांति की हरियाली ढूंढ़ता फिरता है।9 क्या जंगली सांढ़ तेरा काम करने को प्रसन्न होगा? क्या वह तेरी चरनी के पास रहेगा?10 क्या तू जंगली सांढ़ को रस्से से बान्धकर रेघारियों में चला सकता है? क्या वह नालों में तेरे पीछे पीछे हेंगा फेरेगा?11 क्या तू उसके बड़े बल के कारण उस पर भरोसा करेगा? वा जो परिश्रम का काम तेरा हो, क्या तू उसे उस पर छोड़ेगा?12 क्या तू उसका विश्वास करेगा, कि वह तेरा अनाज घर ले आए, और तेरे खलिहान का अन्न इकट्ठा करे?

13 फिर शुतुरमुगीं अपने पंखों को आनन्द से फुलाती है, परन्तु क्या ये पंख और पर स्नेह को प्रगट करते हैं?14 क्योंकि वह तो अपने अण्डे भूमि पर छोड़ देती और धूलि में उन्हें गर्म करती है;15 और इसकी सुधि नहीं रखती, कि वे पांव से कुचले जाएंगे, वा कोई वनपशु उन को कुचल डालेगा।16 वह अपने बच्चों से ऐसी कठोरता करती है कि मानो उसके नहीं हैं; यद्यपि उसका कष्ट अकारथ होता है, तौभी वह निश्चिन्त रहती है;17 क्योंकि ईश्वर ने उसको बुद्धिरहित बनाया, और उसे समझने की शक्ति नहीं दी।18 जिस समय वह सीधी हो कर अपने पंख फैलाती है, तब घोड़े और उसके सवार दोनों को कुछ नहीं समझती है।

19 क्या तू ने घोड़े को उसका बल दिया है? क्या तू ने उसकी गर्दन में फहराती हुई अयाल जमाई है?20 क्या उसको टिड्डी की सी उछलने की शक्ति तू देता है? उसके फुंक्कारने का शब्द डरावना होता है।21 वह तराई में टाप मारता है और अपने बल से हषिर्त रहता है, वह हथियारबन्दों का साम्हना करने को निकल पड़ता है।22 वह डर की बात पर हंसता, और नहीं घबराता; और तलवार से पीछे नहीं हटता।23 तर्कश और चमकता हुआ सांग ओर भाला उस पर खड़खड़ाता है।24 वह रिस और क्रोध के मारे भूमि को निगलता है; जब नरसिंगे का शब्द सुनाई देता है तब वह रुकता नहीं।25 जब जब नरसिंगा बजता तब तब वह हिन हिन करता है, और लड़ाई और अफसरों की ललकार और जय-जयकार को दूर से सूंघ लेता है।

26 क्या तेरे समझाने से बाज़ उड़ता है, और दक्खिन की ओर उड़ने को अपने पंख फैलाता है?27 क्या उकाब तेरी आज्ञा से ऊपर चढ़ जाता है, और ऊंचे स्थान पर अपना घोंसला बनाता है?28 वह चट्टान पर रहता और चट्टान की चोटी और दृढ़स्थान पर बसेरा करता है।29 वह अपनी आंखों से दूर तक देखता है, वहां से वह अपने अहेर को ताक लेता है।30 उसके बच्चे भी लोहू चूसते हैं; और जहां घात किए हुए लोग होते वहां वह भी होता है।

 
adsfree-icon
Ads FreeProfile