the Second Week after Easter
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पवित्र बाइबिल
भजन संहिता 58
1 हे मनुष्यों, क्या तुम सचमुच धर्म की बात बोलते हो? और हे मनुष्यवंशियों क्या तुम सीधाई से न्याय करते हो?2 नहीं, तुम मन ही मन में कुटिल काम करते हो; तुम देश भर में उपद्रव करते जाते हो॥3 दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं, वे पेट से निकलते ही झूठ बोलते हुए भटक जाते हैं।4 उन में सर्प का सा विष है; वे उस नाम के समान हैं, जो सुनना नहीं चाहता;5 और सपेरा कैसी ही निपुणता से क्योंन मंत्र पढ़े, तौभी उसकी नहीं सुनता॥
6 हे परमेश्वर, उनके मुंह में से दांतों को तोड़ दे; हे यहोवा उन जवान सिंहों की दाढ़ों को उखाड़ डाल!7 वे घुलकर बहते हुए पानी के समान हो जाएं; जब वे अपने तीर चढ़ाएं, तब तीर मानों दो टुकड़े हो जाएं।8 वे घोंघे के समान हो जाएं जो घुलकर नाश हो जाता है, और स्त्री के गिरे हुए गर्भ के समान हो जिसने सूरज को देखा ही नहीं।9 उससे पहिले कि तुम्हारी हांडियों में कांटों की आंच लगे, हरे व जले, दोनों को वह बवंडर से उड़ा ले जाएगा॥10 धर्मी ऐसा पलटा देखकर आनन्दित होगा; वह अपने पांव दुष्ट के लोहू में धोएगा॥11 तब मनुष्य कहने लगेंगे, निश्चय धर्मी के लिये फल है; निश्चय परमेश्वर है, जो पृथ्वी पर न्याय करता है॥